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चोखे चौपदे

आप जो चाहिये बिगड़ कहिये।
पर नही यह सवाल होता हल॥
पाँव की धूल झाड़ने वाला।
किस तरह जाय कान झाड़ निकल॥

सब हमारी बात ही फिर क्या रही।
जब न कोई कान नित मलता रहे॥
हिल न बकरे की तरह दाढ़ी सके।
मुँह न बकरी की तरह चलता रहे।।

बाल से बेतरह बिगड़ करके।
किस जनम की कसर गई काढ़ी॥
बन गई भौंह, कट गई चोटी।
उड़ गई मूँछ, बन गई दाढ़ी॥

है भला किस काम के कुछ बाल वे।
जो किसी मुँह पर न भूले भी खिले।
तब करे रख क्या, न रखना चाहिये।
जब कि बकरे सी बुरी दाढ़ी मिले।।