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तरह तरह की बातें

धन बढ़े कब भला न लोभ बढ़ा।
कब हुई लाभ के लिये न सई॥
प्यास है और भी अधिक होती।
पेट पानी हुए न प्यास गई॥

कर कपट साधु-संत से गुरु से।
कब न कपटी बुरी तरह मूये॥
एक दिन जायगा छला वह भी।
पाँव छल साथ जो छली छूये॥

चाँद जैसा खिल अमर सकता नहीं।
क्यों न तो वह फल जैसा ही खिले॥
क्या छोटाई मे भलाई है नही।
दिल करे छोटा न छोटा दिल मिले॥

क्या नही बामन बड़ाई पा सके।
क्या न छोटो बाँसुरी सुन्दर बजी॥
फूल छोटे क्या नहीं है मोहते।
हैं अगर छोटे, करें छोटा न जी॥