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बहारदार बाते
देख करके दुखी जनों का दुख।
दुद है वह मचा रही पल पल।।
या किसी का कराहना सुन कर।
बेतरह है कराहती कोयल॥
जो हुआ है लालसाओं का लहू।
लाल फल दल है उसी में ही रँगा॥
हे उसी का दर्द कोयल कूक में।
कोपलों मे है वही लोहू लगा।।
बसंत के भौरे
गूँज कर, झुक कर, झिझक कर, झूम कर।
भौंर करके झौंर रस ले रहे॥
फूल का खिलना, बिहॅसना, बिलसना।
दिल लुभाना देख है दिल दे रहे॥
गूँजते गूँजते उमग में आ।
है बहुत्त चौक चौक कर अड़ते॥
चाव से चूम चम कलियों को।
मनचले भौर है मचल पड़ते।।