प्रवाहित कर देता है । चिन्ता द्वारा परिचालित चित्त की भी कुछ ऐसी ही दशा है । कवि जब किसी एक विषय का चिन्तन करने में तद्गत होता है, और उस को सुन्दरता एवं भावुकता के साथ प्रकट करने के लिये, भावराज्य में भ्रमण करता है, विचारों को, वाक्यों को छोलने, छालने और खरादने लगता है, तो उस समय अनुषंगिक अनेक भाव उस के हृदय में स्वभावत. उदय होते और उपस्थित विषय के अतिरिक दूसरे अन्य विषयों की ओर भी उस के चित्त को आकर्षित करते हैं। वही अवस्था प्रायः मेरी अनेक अङ्गो के मुँहादिसे पर कोई कविता लिखते समय होती थी। उस समय मैं मुहाविरे पर कविता लिखने के उपरान्त हृदय में स्फुरित अन्य भावों की भी कविता लिख लेता था। इस प्रकार की ही कविताओं का संग्रह यह ग्रंथ है। यदि इन कविताओं अथवा प्रधों को मैंने बोलचाल नामक उक ग्रंथ में ही रहने दिया होता, तो प्रथम तो अंथ का आकार बड़ा हो जाता, दुसरे आंगिक मुहा-विरों का सम्बन्ध इन कविताओं से न होने कारण
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