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अनमोल हीरे

श्राप के हाथ हो बिके हम हैं।
रुचि रही कब न आप की चेरी॥
है अगर चाह भाँप लेने की।
आप तो पीठ नाप ले मेरी॥

अड़ गये अपनी जगह पर गड़ गये।
देख लो तुम टाल टलते ही नहीं॥
हम न मचले है चलें तो क्यों चलें।
ए हमारे पाँव चलते ही नहीं॥




अनमोल हीरे

दृष्टान्त



है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे।
भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी॥
भूल कर भी लड़ी न भौंहों से।
जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी॥