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चोखे चौपदे

फूट पड़ता है उँजाला भी वहाँ।
घोर अंधियाली जहाँ छाई रही॥
जगमगा काली पुतलियों में हमें।
जोत वाले तिल जताते हैं यही॥

सूझ वाले एक दो ही मिल सके।
और सब अधे मिले हम को यहां॥
देखने को देह मे तिल है न कम।
ऑख के तिल से मगर तिल है कहां॥

वह कभी खीच तान मे न पड़ा।
है जिसे आन बान की न पड़ी॥
मोतियों से बनी लड़ी से कब।
आँसुओं की लड़ी लड़ी झगड़ी॥

बीरपन से तन गयों के सामने।
कब जुलाहे तन सके ताना तने॥
सूर कहला ले, मगर क्यों सूरमा।
सूरमापन के बिना अंधा बने॥