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चोखे चौपदे


नित बुराई बुरे रहें करते।
पर भली कब भला रही न भली॥
दाँत चाहे चुभें, गड़ें, कुचलें।
पर गले दाँत जीभ कब न गली॥

सग दुखों से सगा दुखी होगा।
जल ढलेगा जगह मिले ढालू॥
प्यास से जब कि सूखता है मुँह।
जायमा सूख तब न क्यों तालू॥

हित करेंगे जिन्हे कि हित भाया।
लोग चाहे बने रहे रूखे॥
जीभ क्यों चाट चाट तर न करे।
लब तनिक भी अगर कभी सूखे॥

जो भले हैं भला करेंगे ही।
कुछ किसी से कभी बने न बने॥
तर किया कब न जीभ ने लब को।
क्या किया जीभ के लिये लब ने॥