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अनमोल हीरे


बस नहीं जिस बात मे ही चल सका।
हो गई उस बात में ही बेबसी॥
क्यों न भूखा भूख के पाले पड़े।
क्यों न सूखा मुँह हाँसे सूखी हँसी॥

कर सकेंगी संगते कैसे असर।
सब तरह की रंगतें जब हों सधी॥
लाल कब लब की ललाई से हुई।
कब हॅसी उस की मिठाई से बँधी॥

बाढ़ परवाह ही नही करती।
क्यों न उस पर बिपत्ति हो ढहती॥
हम मुड़ा लाख बार दें लेकिन।
मूॅछ निकले बिना नहीं रहती॥

है सभी खीज खीज जाते तब।
रज जब जान बूझ है देते॥
बीसियों बार मनचले लड़के।
मूॅछ तो नोच नोच हैं लेते॥