घटनाओं से प्रसूत आवेशों, उद्गारों और भावों का समावेश होता है। उस समय जाति के नियंत्रण, उद्धोधन, जागरित करण, और संरक्षण इत्यादि में इस से बड़ी सहायता मिलती है, अतएव कुछ समय तक इस प्रकार के साहित्य का बड़ा आदर रहता है। किन्तु समय की गति बदलने और उस की उपयोगिता का अधिक ह्रास अथवा प्रभाव होने पर वह लुम्न हो जाता है। साम येक साहित्य पावस ऋतु के उस जलद जाल के तुल्य है, जो समय पर घिरता है, जल प्रदान करता है, खेतों को सींचता है, सूखे जलाशयों को भरता है, और ऐसे ही दूसरे लोकोपकारी कार्यो को करके अन्तहित हो जाता है । किन्तु स्थायी साहित्य उस जल-चाम्प-समूह के समान है, जो सदैव वायु में सम्मिलित रहता है, पल पल पर संसार-हित-कर कार्यों को करता है, जीवों के जीवनधारण, सुखसम्पादन, स्वास्थ्यवर्द्धन का साधन और समय
पर सामयिक जलदजाल के जन्द्रा देने का हेतु भी होता है।