पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/९६

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अन्योक्ति

बाल

बीर ऐसे दिखा पड़े न कही।
सब बड़े आनबान साथ कटे॥
जब रहे तो डटे रहे बढ़ कर।
बाल भर भी कभी न बाल हटे॥

तुच गये, खिच उठे, गिरे, टूटे।
और भख मार अन्त में सुलझे॥
कंघियों ने उन्हें बहुत झाड़ा।
क्या भला बाल को मिला उलझे॥

मैल अपना सके नहीं कर दूर।
और रूखे बने रहे सब काल॥
मुड़ गये जब कि वे सिधाई छोड़।
तो हुआ ठीक मुड़ गये जो बाल॥