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जहाँनारा
 


लाश को !

जहांनारा से अब न रहा गया, और दौड़कर सुगन्धित जल लेकर वृद्ध पिता के मुख पर छिड़कने लगी।

औरंगजेब--( उधर देखकर ) है ! यह कौन है, जो मेरे बूढ़े बाप को पकड़े हुए है ? ( शाहजहां के मुसाहिबों से ) तुम सब बड़े नामाकूल हो; देखते नही, हमारे प्यारे बाप की क्या हालत है, और उन्हें अभी भी पलँग पर नहीं लिटाया। (औरंगजेब के साथ-साथ सब तख्त की ओर बढ़े )।

जहांनारा उन्हें यों बढ़ते देखकर फुरती से कटार निकालकर और हाथ में शाही मुहर किया हुआ कागज निकालकर खड़ी हो गयी और बोली---देखो, इस परवाने के मुताबिक मै तुम लोगों को हुक्म देती हूँ कि अपनी-अपनी जगह पर खड़े रहो, जब तक मैं दूसरा हुक्म न दूं।

सब उसी कागज की ओर देखने लगे। उसमें लिखा था---इस शख्स का सब लोग हुक्म मानो और मेरी तरह इज्जत करो।

सब उसकी अभ्यर्थना के लिये झुक गये, स्वयं औरंगजेब भी झुक गया, और कई क्षण तक सब निस्तब्ध थे।

अकस्मात् औरंगजेब तनकर खड़ा हो गया और कड़ककर बोला---गिरफ्तार कर लो इस जादूगरनी को । यह सब झूठा फिसाद है, हम सिवा शाहंशाह के और किसी को नहीं मानेंगे।

सब लोग उस औरत की ओर बढ़े । जब उसने यह देखा, तब फौरन अपना नकाब उलट दिया । सब लोगों ने सिर झुका दिया, और पीछे हट गये । औरंगजेब ने एक बार फिर सिर नीचे कर लिया, और कुछ बड़बड़ाकर जोर से बोला--कौन, जहांनारा, तुम यहां कैसे ?

जहानारा---औरंगजेब ! तुम यहां कैसे ?

औरंगजेब---( पलटकर अपने लड़के की तरफ देखकर) बेटा!