मदन के मन में यह बात क्यों उत्पन्न हई ? दोनों सुन्दर थे,दोनों ही किशोर थे, दोनों संसार से अनभिज्ञ थे, दोनों के हृदय में
रक्त था--उच्छवास था--आवेग था--विकास था, दोनों के हृदय-
सिन्धु में किसी अपूर्व चन्द्र का मधुर-उज्जवल प्रकाश पड़ता था,
दोनों के हृदय-कानन में नन्दन-पारिजात खिला था !
जिस परिवार मे बालक मदन पलता था, उसके मालिक है अमरनाथ बनर्जी । आपके नवयुवक पुत्र का नाम है किशोरनाथ
बनर्जी कन्या का नाम मृणालिनी और गृहिणी का नाम हीरामणि
है । बम्बई और कलकत्ता, दोनो स्थानों में, आपकी दूकान थी,
जिनमें बाहरी चीजों का क्रय-विक्रय होता था; विशेष काम मोती
के बनिज का था। आपका आफिस सीलोन में था; वहां से मोती
की खरीद होती थी। आपकी कुछ जमीन भी वहां थी। उससे
आपकी बड़ी आय थी। आप प्रायः अपनी बम्बई की दुकान में और आपका परिवार कलकत्ते में रहता था। धन अपार था, किसी
चीज की कमी न थी। तो भी आप एक प्रकार से चिन्तित थे !
संसार में कौन चिन्ताग्रस्त नहीं है ? पशु-पक्षी, कीट-पतंग,चैतन और अचेतन, सभी को किसी प्रकार की चिन्ता है । जो योगी है, जिन्होंने सब कुछ त्याग दिया है, संसार जिनके वास्ते असार है,उन्होंने भी इसको स्वीकार किया है। यदि वे आत्मचिन्तन न करें,तो उन्हें योगी कौन कहेगा ?
किन्तु बनर्जी महाशय की चिन्ता का कारण क्या है ? सो पति-पत्नी की इस बातचीत से ही विदित हो जायगा---
अमरनाथ---किशीर तो क्वांरा ही रहा चाहता है । अभी तक उसकी शादी कहीं पक्की नहीं हुई।
हीरामणि---सीलोन में आपके व्यापार करने तथा रहने से