अपनी उधेड़-बुन में चला जता था कि किसी ने पीठ पर हाथ रक्खा ।
मदन ने पीछे देखकर कहा--आह, आप है किशोर बाबू ?
किशोरनाथ ने हँसकर कहा--कहां बगदादी ऊँट की तरह भागे जाते हो ?
कहीं तो नहीं, यही समुद्र की ओर जा रहा हूँ।
समुद्र की ओर क्यों ?
शरण मागने के लिए।
यह बात मदन ने डबडबायी हुई आंखों से किशोर की ओर देखकर कही।
किशोर ने रूमाल से मदन के आंसू पोंछते-पोंछते कहा---मदन, हम जानते है कि उस दिन बाबूजी ने जो तिरस्कार किया था उससे तुमको बहुत दुःख है । मगर सोचो तो, इसमे दोष किसका है ? यदि तुम उस रोज मृणालिनी को बहकाने का उद्योग न करते,तो बाबजी तुम पर क्यों अप्रसन्न होते ?
अब तो मदन से नहीं रहा गया । उसने क्रोध से कहा--कौन दुष्ट उस देवबाला पर झूठा अपवाद लगाता है ? और मैने उसे चहकाया है ? इस बात का कौन साक्षी है ? किशोर बाबु !आप लोग मालिक है, जो चाहें सो कहिये । आपने पालन किया है, इसलिए, यदि आप आज्ञा दे तो मदन समुद्र में भी कूद पड़ने के लिए तैयार है, मगर अपवाद और अपमान से बचाये रहिये।
कहते-कहते मदन का मुख क्रोध से लाल हो आया, आंखों में आंसू भर आये, उसके आकार से उस समय दृढ़ प्रतिज्ञा झलकती थी।
किशोर ने कहा--इस बारे में विशेष हम कुछ नहीं जानते,केवल मां के मुख से सुना था कि जमादार ने बाबूजी से तुम्हारी निन्दा की है और इसी से वह तुम पर बिगड़े है ।
मदन ने कहा---आप लोग अपनी बाबूगीरी में भूले रहते हैं