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मदन-मृणालिनी
 


और ये बेईमान आपका सब माल खाते है। मैने उस जमादार को मोती निकालनेवालों के हाथ मोती बेचते देखा; मैने पूछा--- क्यों, तुमने मोती कहां पाया? तब उसने गिड़गिड़ाकर, पैर पकड़कर,मुझसे कहा--बाबूजी से न कहियेगा। मैने उसे डांट कर फिर ऐसा काम न करने के लिए कहकर छोड़ दिया, आप लोगों से नही कहा । इसी कारण वह ऐसी चाल चलता है और आप लोगों ने भी बिना सोचे-समझे उसकी बात पर विश्वास कर लिया है।

यों कहते-कहते मदन उठ खड़ा हो गया। किशोर ने उसका हाथ पकड़कर बैठाया और आप भी बैठकर कहने लगा---मदन, घबड़ाओ मत, थोड़ी देर बैठकर हमारी बात सुनो। हम उसको दण्ड देंगे और तुम्हारा अपवाद भी मिटावेंगे। मगर हम एक बात जो कहते है, उसे ध्यान देकर सुनो । मृणालिनी अब बालिका नहीं है,और तुम भी बालक नहीं हो। तुम्हारे उसके जैसे भाव है, सो भी हमसे छिपे नहीं है । फिर ऐसी जगह पर हम तो यही चाहते है कि तुम्हारा और मृणालिनी का ब्याह हो जाय।

मदन ब्याह का नाम सुनकर चौंक पड़ा, और मन में सोचने लगा कि यह कैसी बात ? कहां हम युक्तप्रान्त-निवासी अन्य-जातीय,और कहां ये बंगाली ब्राह्मण, फिर ब्याह किस तरह हो सकता है !हो-न-हो ये मुझे भुलावा देते है। क्या मै इनके साथ अपना धर्म नष्ट करूँगा ? क्या इसी कारण ये लोग मुझे इतना सुख देते है और खूब खुलकर मृणालिनी के साथ घूमने-फिरने और रहने देते थे?मृणालिनी को मै जी से चाहता हूँ, और जहां तक देखता हूँ, मृणालिनी भी मुझसे कपट-प्रेम नहीं करती। किन्तु यह ब्याह नहीं हो सकता;यद्यपि इसमें धर्म और अधर्म दोनो का डर है। धर्म का निर्णय करने की मुझमें शक्ति नहीं है। मैने ऐसा ब्याह होते न देखा है