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१३
चन्दा
 

तब न!

रामू—क्यों चन्दा! क्या कहती हो?

चन्दा—मैं तुमसे ब्याह न करूंगी।

रामू—तो हीरा से भी तुम ब्याह नहीं कर सकती!

चन्दा—क्यों?

रामू—(हीरा से) अब हमारा-तुम्हारा फैसला हो जाना चाहिये, क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें नही रह सकतीं।

इतना कहकर हीरा के ऊपर झपटकर उसने अचानक छुरे का वार किया।

हीरा यद्यपि सचेत हो रहा था; पर उसको सम्हलने में विलम्ब हुआ, इससे घाव लग गया, और वह वृक्ष थामकर बैठ गया। इतने में चन्दा जोर से क्रन्दन कर उठी—साथ ही एक वृद्ध भील आता हुआ दिखाई पड़ा।

युवती मुंह ढांपकर रो रही है, और युवक रक्ताक्त छूरा लिये, घृणा की दृष्टि से खड़े हुए, हीरा की ओर देख रहा है। विमल चन्द्रिका में चित्र की तरह वे दिखाई दे रहे हैं। वृद्ध को जब चन्दा ने देखा, तो और वेग से रोने लगी। उस दृश्य को देखते ही वृद्ध कोल-पति सब बात समझ गया, और रामू के समीप जाकर छूरा उसके हाथ से ले लिया, और आज्ञा के स्वर में कहा—तुम दोनों हीरा को उठाकर नदी के समीप ले चलो।

इतना कहकर वृद्ध उन सबों के साथ आकर नदी-तट पर जल के समीप खड़ा हो गया। राम और चन्दा दोनों ने मिलकर उसके घाव को धोया और हीरा के मुंह पर छींटा दिया, जिससे उसकी मूर्छा दूर हुई। तब वृद्ध ने सब बातें हीरा से पूछीं; पूछ लेने पर