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चन्दा
 


एक गुहा में जहां कि छतनार पेड़ों की छाया उष्ण वायु को भी शीतल कर देती है, हीरा और चन्दा बैठे है । हृदय के अनन्त विकास से उनका मुख प्रफुल्लित दिखाई पड़ता है। उन्हें वस्त्र के लिये वृक्षगण वल्कल देते है; भोजन के लिये प्याज-मेवा इत्यादि जंगली सुस्वादु फल, शीतल-स्वच्छन्द पवन; निवास के लिये गिरि-गुहा, प्राकृतिक झरनों का शीतल जल उनके सब अभावों को दूर करता है, और सबल तथा स्वच्छन्द बनाने में ये सब सहायता देते है । उन्हें किसी की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती। अस्तु, उन्हीं सब सुखों से आनंदित व्यक्तिद्वय 'चन्द्रप्रभा' के जल का कल-नाद सुनकर अपनी हृदय-वीणा को बजाते है ।

चन्दा---प्रिय ! आज उदासीन क्यों हो !

हीरा---नहीं तो, मै यह सोच रहा हूँ कि इस वन में राजा आनेवाले है । हमलोग यद्यपि अधीन नहीं है, तो भी उन्हें शिकार खेलाया जाता है, और इसमें हमलोगो की कुछ हानि भी नहीं है। उसके प्रतिकार में हमलोगों को कुछ मिलता है, पर आजकल इस वन में जानवर दिखाई नही पड़ते। इसलिये सोचताहं कि कोई शेर था,छोटा चीता भी मिल जाता, तो कार्य हो जाता।

चन्दा---खोज किया था ?

हीरा---हां, आदमी तो गया है।

इतने में एक कोल दौड़ता हुआ आया, और कहा---राजा आ गये हैं और तहखाने में बैठे है। एक तेंदवा भी दिखाई दिया है।

हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, और वह अपना कुल्हाड़ा सम्हालकर उस आगन्तुक के साथ वहां पहुंचा, जहां शिकार का आयोजन हो चुका था।

राजा साहब झंझरी में बन्दूक की नाल रखे हुए ताक रहे है। एक ओर से बाजा बज उठा । एक चीता भागता हुआ सामने से