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छाया
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आज्ञा पाते ही बालिका उस क्षुद्र गृह के एक मिट्टी के बर्तन में से कुछ वस्तु निकाल, उसे एक पात्र में घोलकर ले आयी, और मोहनलाल के सामने रख दिया । मोहनलाल उस शर्बत को पान करके फूस की चटाई पर बैठकर स्त्री की कथा सुनने लगे।

स्त्री कहने लगी---हमारे पति इस प्रान्त के गण्य भूस्वामी थे, और वंश भी हमलोगों का बहुत उच्च था । जिस गांव का अभी आपने नाम लिया है, वही हमारे पति को प्रधान जमीदारी थी । कार्य-वश एक कुन्दनलाल नामक महाजन से कुछ ऋण लिया गया। कुछ भी विचार न करने से उनका बहुत रुपया बढ़ गया, और जब ऐसी अवस्था पहुंची तो अनेक उपाय करके हमारे पति धन जुटाकर उनके पास ले गये, तब उस धूर्त ने कहा---"क्या हर्ज है बाबू साहब !आप आठ रोज में आना, हम रुपया लेलेंगे, और जो घाटा होगा,उसे छोड़ देंगे, आपका इलाका फिर जायगा, इस समय रेहननामा भी नहीं मिल रहा है।"उसका विश्वास करके हमारे पति फिर बैठ रहे, और उसने कुछ भी न पूछा । उनकी उदारता के कारण वह संचित धन भी थोड़ा हो गया, और उधर उसने दावा करके इलाका---जो कि वह ले लेना चाहता था---बहुत थोड़े रुपये में नीलाम करा लिया । फिर हमारे पति के हृदय में, उस इलाका के इस भांति निकल जाने के कारण, बहुत चोट पहुंची और इसी से उनकी मृत्यु हो गयी । इस दशा के होने के उपरान्त हम लोग इस दूसरे गांव में आकर रहने लगीं। यहां के जमींदार बहुत धर्मात्मा है, उन्होंने कुछ सामान्य 'कर' पर यह भूमि दी है, इसी से अब हमारी जीविका है। ...........

इतना कहते-कहते स्त्री का गला अभिमान से भर आया, और कुछ कह न सकी।