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रसिया बालम
 


महाराज---नहीं,ठहरो और सुनो । यह स्थिर हो चुका है कि राजकुमारी का ब्याह बलवन्त से होगा, तुम इसे परिहास मत जानो।

अब जो महारानी ने महाराज के मुख की ओर देखा तो वह दृढ़प्रतिज्ञ दिखाई पड़े। निदान विचलित होकर महारानी ने कहा--- अच्छा, मै भी प्रस्तुत हो जाऊंगी, पर इस शर्त पर कि जब यह पुरुष अपने बाहुबल से उस झरने के समीप से नीचे तक एक पहाड़ी रास्ता काटकर बना ले; उसके लिये समय अभी से केवल प्रातः-काल तक का देती हूँ--जब तक कि कुक्कुट का स्वर न सुनाई पड़े। तब अवश्य मै भी राजकुमारी का ब्याह इसी से कर दूगी।

महाराज ने युवक की ओर देखा, जो निस्तब्ध बैठा हुआ सुन रहा था । वह उसी क्षण उठा और बोला---मै प्रस्तुत हूँ, पर कुछ औजार और मसाले के लिए थोड़े विष की आवश्यकता है।

उसकी आज्ञानुसार सब वस्तुएँ उसे मिल गयी, और वह शीघ्रता से उसी झरने के तट की ओर दौड़ा, और एक विशाल शिलाखण्ड पर जाकर बैठ गया, और उसे तोड़ने का उद्योग करने लगा;क्योंकि इसी के नीचे एक गुप्त पहाड़ी पथ था ।

निशा का अन्धकार कानन-प्रदेश में अपना पूरा अधिकार जमाये हुए है । प्रायः आधी रात बीत चुकी है। पर केवल उन अग्नि- स्फुलिंगो से कभी-कभी थोड़ा-सा जुगनू का-सा प्रकाश हो जाता है, जो कि रसिया के शस्त्रप्रहार से पत्थरों में से निकल पड़ते हैं। दनादन् चोट चली जा रही है--विराम नहीं है क्षण---भर भी न तो उस शैल को और न उस शस्त्र को । अलौकिक शक्ति से वह युवक अविराम चोट लगाये ही जा रहा है। एक क्षण के लिये भी इधर-उधर नहीं देखता । देखता है, तो केवल अपना हाथ और पत्थर; उंगली एक तो पहले ही कुचली जा चुकी थी, दूसरे अविराम परिश्रम !इससे रक्त बहने लगा था। पर विश्राम कहां ? उस वज्रसार