पृष्ठ:छाया.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

प्रभात-कालीन सूर्य की किरणे अभी पूर्व के आकाश मे नहीं दिखाई पड़ती है। ताराओं का क्षीण प्रकाश अभी अम्बर में विद्यमान है। यमुना के तट पर दो-तीन रमणियां खड़ी है, और दो--यमुना की उन्हीं क्षीण लहरियों में जो कि चन्द्र के प्रकाश से सञ्जित हो रही है--स्नान कर रही है । अकस्मात् पवन बड़े वेग से चलने लगा। इसी समय एक सुन्दरी, जो कि बहुत ही सुकुमारी थी, उन्हीं तरल तरंगों में निमग्न हो गयी । दूसरी, जो कि घबड़ाकर निकलना चाहती थी, किसी काठ का सहारा पाकर तट की ओर खड़ी हुई अपनी सखियों में जा मिली। पर वहां सुकुमारी नहीं थी । सब रोती हुई यमुना के तट पर घूमकर उसे खोजने लगीं।

अन्धकार हट गया। अब सूर्य भी दिखाई देने लगे । कुछ ही देर में उन्हें,घबड़ाई हुई स्त्रियों को आश्वासन देती हुई, एक छोटी-सी नाव दिखाई दी। उन सखियों ने देखा कि वह सुकुमारी ।उसी नाव पर एक अंग्रेज और एक लेडी के साथ बैठी हुई है ।

तट पर आने पर मालूम हुआ कि सिपाही-विद्रोह की गड़बड़ से भागे हुए एक सम्भान्त योरोपियन-दम्पति उस नौका के आरोही है। उन्होंने सुकुमारी को डूबते हुए बचाया है और इसे पहुंचाने के लिये वे लोग यहां तक आये हैं।

सुकुमारी को देखते ही सब सखियों ने दौड़ कर उसे घेर लिया और उससे लिपट-लिपटकर रोने लगी । अंग्रेज और लेडी दोनों ने जाना चाहा, पर वे स्त्रियां कब माननेवाली थीं ? लेडी साहिबा को रुकना पड़ा। थोडी देर में यह खबर फैल जाने से उस गांव के जमींदार ठाकुर किशोर सिंह भी उस स्थान पर आ गये। अब, उनके