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शरणागत
 


चली गयी, किन्तु एलिस ने पीछा न छोड़ा। वह भी वहां पहुंची, और उसे पकड़ा । सुकुमारी एलिस को देख गिड़-गिड़ाकर बोली---क्षमा कीजिये, हम लोग पति के सामने कुर्सी पर नहीं बैठतीं, और न कुर्सी पर बैठने का अभ्यास ही है।

एलिस चुपचाप खड़ी रह गयी, वह सोचने लगी कि--क्या सचमुच पति के सामने कुर्सी पर न बैठना चाहिये ! फिर उसने सोचा---यह बेचारी जानती ही नही कि कुसी पर बैठने में क्या सुख है।

चन्दनपुर के जमींदार के यहां आश्रय लिये हुए योरोपियन- दम्पति सब प्रकार सुख से रहने पर भी सिपाहियों का अत्याचार सुनकर शंकित रहते थे। दयाल किशोर सिंह यद्यपि उन्हें बहुत आश्वासन देते,तो भी कोमल प्रकृति की सुन्दरी एलिस सदा भयभीत रहती थी।

दोनों दम्पति कमरे में बैठे हुए यमुना का सुन्दर जल-प्रवाह देख रहे हैं । विचित्रता यह है कि 'सिगार' न मिल सकने के कारण विस्फर्ड साहब सटक के सड़ाके लगा रहे है । अभ्यास न होने के कारण सटक से उन्हें बड़ी अड़चन पड़ती थी, तिस पर सिपाहियों के अत्याचार का ध्यान उन्हें और भी उद्विग्न किये हुए था; क्योंकि एलिस का भय से पीला मुख उनसे देखा न जाता था।

इतने में बाहर कोलाहल सुनायी पड़ा। एलिस के मुख से 'ओ माई गाड' (Oh my God) निकल पड़ा। और भय से वह मूर्छित हो गयी। विल्फर्ड और किशोरसिंह ने एलिस को पलंग पर लिटाया, और आप 'बाहर क्या है' सो देखने के लिये चले ।