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छाया
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विल्फर्ड ने अपनी राइफल हाथ में ली और साथ में जाना चाहा, पर किशोर सिंह ने उन्हें समझाकर बैठाला और आप खूटी पर लटकती हुई तलवार लेकर बाहर निकल गये।

किशोर सिंह बाहर आये। देखा तो पांच कोस पर जो उनका सुन्दरपुरग्राम है, उसे सिपाहियों ने लूट लिया और प्रजा दुखी होकर अपने जमींदार से अपनी दुःखगाथा सुनाने आयी है। किशोर सिंह ने सबको आश्वासन दिया, और उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने के लिये कर्मचारियों को आज्ञा देकर आप विल्फर्ड और एलिस को देखने के लिये भीतर चले आये।

किशोर सिंह स्वाभाविक दयालु थे और उनकी प्रजा उन्हें पिता के समान मानती थी, और उनका उस प्रान्त में भी बड़ा सम्मान था । वह बहुत बड़े इलाकेदार होने के कारण छोटे-से राजा समझे जाते थे। उनका प्रेम सब पर बराबर था। किन्तु, विल्फर्ड और सरला एलिस को भी वह बहुत चाहने लगे, क्योंकि प्रियतमा सुकुमारी की उन लोगों ने प्राणरक्षा की थी।

किशोर सिंह भीतर आये। एलिस को देखकर कहा--डरने की कोई बात नहीं है। वह मेरी प्रजा थी, समीप के सुन्दरपुर गांव में वे सब रहते है । उन्हें सिपाहियों ने लूट लिया है । उनका बन्दोबस्त कर दिया गया है। अब उन्हें कोई तकलीफ नहीं है।

एलिस ने लम्बी सांस लेकर आंख खोल दी, और कहा---क्या वे सब गये ?

सुकुमारी---घबराओ मत, हम लोगों के रहते तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं हो सकता।

विल्फर्ड---क्या सिपाही रियासतों को लूट रहे हैं ?

किशोर सिंह---हां, पर अब कोई डर नहीं है, वे लूटते हुए इधर से निकल गये।