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सिकन्दर की शपथ
 


उसके चीत्कार से दुर्ग पर का एक प्रहरी भुककर देखने लगा। उसने प्रकाश डालकर पूछा-- कौन है ?

उत्तर मिला--मै दुर्ग से नीचे गिर पड़ा हूं।

प्रहरी ने कहा---घबड़ाइये मत, मै डोरी लटकाता हूं।

डोरी बहुत जल्द लटका दी गयी, अफगान वेशधारी सिकन्दर [उसके सहारे ऊपर चढ़ गया । ऊपर जाकर सिकन्दर ने उस प्रहरी को भी नीचे गिरा दिया, जिसे उसके साथी ने मार डाला और उसका वेश आप लेकर उसी सीढ़ी से ऊपर चढ़ गया । जाने के पहले उसने अपनी छोटी-सी सेना को भी उसी जगह बुला लिया और धीरे-धीरे उसी रस्सी की सीढ़ी से वे सब ऊपर पहुंचा दिये गये।

दुर्ग के प्रकोष्ठ में सरार की सुन्दर पत्नी बैठी हुई है ।मदिराविलोल दृष्टि से कभी दर्पण में अपना सुन्दर मुख और कभी अपने नवीन नील वसन को देख रही है । उसका मुख लालसा की मदिरा से चमक-चमक कर उसकी ही आंखों में चकाचौंध पैदा कर रहा है। अकस्मात् 'प्यारे सर्दार' कहकर वह चौंक पड़ी, पर उसकी प्रसन्नता उसी क्षण बदल गयी, जब उसने सर्दार के वेश में दूसरे को देखा। सिकन्दर का मानुषिक सौन्दर्य कुछ कम नहीं था, अबला-हृदय को और भी दुर्बल बना देने के लिये वह पर्याप्त था। वे एक दूसरे को निर्निमेष दृष्टि से देखने लगे। पर अफगान-रमणी की शिथिलता देर तक न रही, उसने हृदय के सारे बल को एकत्र करके पूछा--तुम कौन हो? |

उत्तर मिला---शाहंशाह सिकन्दर ।

रमणी ने पूछा--यह वस्त्र किस तरह मिला ?

सिकन्दर ने कहा--सर्दार को मार डालने से ।