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चित्तौड़-उद्धार
 


और, मुझे चित्तौर से अपने साथ लिवा न जाकर यहीं सिंहासन पर बैठिये । दासी चरण-सेवा करके कृतार्थ होगी।

चित्तौर-दुर्ग के सिंहद्वार पर एक सहस्त्र राजपूत-सवार और उतने ही भील-धनुर्धर पदातिक उन्मुक्त शस्त्र लिये हुए महाराणा हम्मीर की जय का भीम-नाद कर रहे है ।

दुर्ग-रक्षक सचेष्ट होकर बुर्जियों पर से अग्नि-वर्षा करा रहा है, किन्तु इन दृढप्रतिज्ञ वीरों को हटाने में असमर्थ है । दुर्गद्वार बन्द है। आक्रमणकारियों के पास दुर्गद्वार तोड़ने का कोई साधन नहीं है, तो भी वे अदम्य उत्साह से आक्रमण कर रहे है । वीर हम्मीर कतिपय उत्साही वीरों के साथ अग्रसर होकर प्राचीर पर चढ़ने का उद्योग करने लगे, किन्तु व्यर्थ, कोई फल नही हुआ । भीलों की बाण-वर्षा से हम्मीर का शत्रुपक्ष निर्बल होता था, पर वे सुरक्षित थे। चारों ओर भीषण हत्या काण्ड हो रहा है।अकस्मात् दुर्ग का सिंहद्वार सशब्द खुला।

हम्मीर की सेना ने समझा कि शत्रु मैदान में युद्ध करने लिये आ गये, बड़े उल्लास से आक्रमण किया गया । किन्तु देखते है तो सामने एक सौ क्षत्राणियां हाथ में तलवार लिये हुए दुर्ग के भीतर खड़ी है ! हम्मीर पहले तो संकुचित हुए, फिर जब देखा कि स्वयं राजकुमारी ही उन क्षत्राणियों की नेतृ है और उनके हाथ में भी तलवार है, तो वह आगे बढ़े। राजकुमारी ने प्रणाम करके तलवार महाराणा के हाथों में दे दी, राजपूतों ने भीम नाद के साथ एकलिंग 'की जय' घोषित किया ।

वीर हम्मीर अग्रसर नहीं हो रहे है । दुर्ग से रक्षक ससैन्य उसी स्थान पर आ गया, किन्तु वहां का दृश्य देखकर वह भी अवाक् हो गया । हम्मीर ने कहा-सेनापते ! मैं इसी तरह दुर्ग-अधिकार