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छाया
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अपने यहां भागे हए जैन विधर्मियों को आश्रय दिया है ? समझ रख, तू हम लोगों से बहाना नहीं कर सकता, क्योंकि उनका रथ इस बात का ठीक पता दे रहा है।

महात्मा---सैनिको, तुम उन्हें लेकर क्या करोगे ? मैने अवश्य उन दुखियों को आश्रय दिया है। क्यों व्यर्थ नर-रक्त से अपने हाथों को रंजित करते हो ?

सैनिक अपने साथियों की ओर देखकर बोला—--यह दुष्ट भी जैन ही है, ऊपरी बौद्ध बना हुआ है। इसे भी मारो ।

'इसे भी मारो' का शब्द गूंज उठा, और देखते-देखते उस महात्मा का सिर भूमि में लोटने लगा।

इस कांड को देखते ही कुटी के स्त्री पुरुष चिल्ला उठे । उन नर-पिशाचों ने एक को भी न छोड़ा! सबकी हत्या की ।

अब, सब सैनिक धन खोजने लगे । मृत स्त्री-पुरुषों के आभू- षण उतारे जाने लगे । एक सैनिक, जो उस महात्मा की ओर झुका था, चिल्ला उठा । सबका ध्यान उसी ओर आकर्षित हुआ। सब सैनिकों ने देखा, उसके हाथ में एक अंगूठी है, जिस पर लिखा है 'वीताशोक' !

महाराज अशोक के भाई, जिनका पता नहीं लगता था, वही 'वीताशोक' मारे गये ! चारों ओर उपद्रव शान्त है। पौण्ड्रवर्धन नगर प्रशान्त समुद्र की तरह हो गया है।

महाराज अशोक पाटलिपुत्र के साम्राज्य-सिंहासन पर विचार- पति होकर बैठे है। राजसभा की शोभा तो कहते नहीं बनती। सुवर्ण-रचित बेल-बूटों की कारीगरी से, जिनमें मणि-माणिक्य स्थानानुकूल बिठाये गये है--मौर्य-सिंहासन मंदिर-भारतवर्ष का वैभव