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गुलाम
 


न मालूम वही कामिनी के वक्षस्थल को पीड़न करने लगी।

शाहआलम की उंगलियां, उस कोमल बाल-रवि-कर-सामन स्पर्श से, कलियों की तरह चटकने लगीं। बालक की निर्निमे दृष्टि आकाश की ओर थी। अकस्मात् बादशाह ने कहा---मीना ख्वाजा-सरा से कह देना कि इस कादिर को अपनी खास तालीम में रखे, और उसके सुपुर्द कर देना ।

एक डांड़े चलानेवाली ने झुककर कहा--बहुत अच्छा हुजूर !

बेगम ने अपने सीने से तकिये को और दबा दिया; किन्तु वह कुछ न बोल सको, दबकर रह गयी।

उपर्युक्त घटना को बहुत दिन बीत गये । गुलाम कादिर अब अच्छा युवक मालूम होने लगा। उसका उन्नत स्कन्ध, भरी-भरी बांहें और विशाल वक्षस्थल बड़े सुहावने हो गये। किन्तु कौन कह सकता है कि वह युवक है । ईश्वरीय नियम के विरुद्ध उसका पुंसत्व छीन लिया गया है।

कादिर, शाहआलम का प्यारा गुलाम है । उसकी तूती बोल रही है, सो भी कहां? शाही नौबतखाने के भीतर ।

दीवाने-आम में अच्छी सज-धज है । आज कोई बड़ा दरबार होनेवाला है । सब पदाधिकारी अपने योग्यतानुसार वस्त्राभूषण से सजकर अपने-अपने स्थान को सुशोभित करने लगे । शाहआलम भी तख्त पर बैठ गये । तुला-दान होने के बाद बादशाह ने कुछ लोगों का मनसब बढ़ाया और कुछ को इनाम दिया । किसी को हमें दिये गये; किसी की पदवी बढ़ायी गयी; किसी की तनख्वाह बढ़ी।

किन्तु बादशाह यह सब करके भी तृप्त नहीं दिखाई पड़ते ।उनकी निगाहें किसी को खोज रही है। वे इशारा कर रही है कि