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छाया
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भारत के सपूत, हिन्दुओं के उज्ज्वल रत्न छत्रपति महाराज शिवाजी ने जो अध्यवसाय और परिश्रम किया, उसका परिणाम मराठों को अच्छा मिला, और उन्होंने भी जब तक उस पूर्व-नीति को अच्छी तरह से माना, लाभ उठाया । शाहआलम के दरबार में क्या---भारत में---आज मराठा-वीर सेंधिया ही नायक समझा जाता है । सेंधिया की विपुल वाहिनी के बल से शाहआलम नाम- मात्र को दिल्ली के सिंहासन पर बैठे है। बिना सेंधिया के मंजूर किये वादशाह-सलामत रत्ती-भर हिल नहीं सकते। सेंधिया, दिल्ली और उसके बादशाह के, प्रधान रक्षक है । शाहआलम का मुगल रक्त सर्द हो चुका है।

सेंधिया आपस के झगड़े तय करने के लिये दक्खिन चला गया है । 'मंसूर' नामक कर्मचारी ही इस समय बादशाह का प्रधान सहायक है। शाहआलम का पूरा शुभचिन्तक होने पर भी वह हिन्दू सेंधिया की प्रधानता से भीतर-भीतर जला करता था।

जला हुआ, विद्रोह का झंडा उठाये, इसी समय, गुलाम कादिर रुहेलों के साथ सहारनपुर से आकर दिल्ली के उस पार डेरा डाले पड़ा है । मंसूर उसके लिये हर तरह से तैयार है। एक बार वह भुलावे में आकर चला गया है। अबकी बार उसकी इच्छा है कि वजारत वही करे।

बूढ़े बादशाह संगमर्मर के मीनाकारी किये हुए बुर्ज मे गाव-तकिये के सहारे लेटे हुए हैं । मंसूर सामने हाथ बांधे खड़ा है।शाहआलम ने भरी हुई आवाज में पूछा---क्यों मंसूर ! क्या गुलाम कादिर सचमुच दिल्ली पर हमला करके तख्त छीनना चाहता है ? क्या उसको इसीलिए हमने इस मरतबे पर पहुंचाया ? क्या सबका आखिरी नतीजा यही है ? बोलो, साफ कहो । रुको मत,जिसमें कि तुम बात बता सको ।