पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/५८

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दुसरा अङ्क―पहला दृश्य

के मनुष्य अपने को किसो बड़े प्रयोजन की वस्तु समझने लगते हैं। उन्हें विश्वास हो जाता है कि हम किसी दूसरे जगत के हैं।

मणिमाला―किन्तु मैं तो समझती हूँ कि ऐसे तुच्छ विचार रखने वाले साधारण मनुष्यों से भी नीचे हैं।

शीला―सखि, तुम ऐसा सोच सकती हो; क्योकि तुम भी नागराज की कन्या हो। किन्तु मैं तो साधारण विप्र कन्या हूँ।

मणिमाला―अहा! कैसी भोली है! क्या कहना!

शीला―(हँसकर) राजकुमारघ, सुना है, आज उनके आश्रम में फिर सम्राट जनमेजय आने वाले हैं।

मणिमाला―सखि, जब तुम सम्राट् को पुरोहितानी होगी, तब हम लोगों पर क्यों कृपा रक्खोगी!

शोला―और यदि कही तुम्हीं सम्राज्ञी हो जाओ, तब?

मणिमाला―(लज्जित होकर) चल पगली!

आस्तीक―(प्रवेश करके) महर्षि ने तुम लोगो को बुलाया है।

[सब जाते है]
 


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