पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/५९

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दूसरा दृश्य
स्थान―पथ
[ एक ओर से दामिनी और दूसरी ओर से माणवक का प्रवेश ]

दामिनी―मै किधर आ निकली! राह भूल गई हूँ।

माणवक―आप कहाँ जाना चाहती है?

दामिनी―मैं―मै―

माणवक―हाँ हाँ, आप कहाँ जायँगी?

दामिनी―मैं बता नहीं सकती―मैं जानती हो नही।

माणवक―शुभे! संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो जाना तो चाहते हैं, परन्तु कहाँ जाना चाहते हैं, इसका उन्हे कुछ भी पता नहीं।

दामिनी―पर क्या आप बतला सकते है?

माणवक―(स्वगत) यह अच्छी रही! बड़ी बिचित्र स्त्री मिली। समझ में नहीं आता कि यह कोई बनो हुई मायाविनी है या सचमुच कोई भूली भटकी है।

दामिनी―आप बोलते क्यों नहीं?

माणवक―मुझे अधिक बातें करने का अभ्यास नहीं। मैं यही नहीं जानता कि आप कहाँ जाना चाहती हैं; तब कैसे और क्या बताऊँ! मुझे―

दामिनी―आप कहाँ रहते हैं?