पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/६३

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तीसरा दृश्य
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[ जनमेजय और उत्तङ्क ]

जनमेजय―आपकी यह बात तो मुझे जँच गई है, और मैं ऐसा ही करूँगा भी। किन्तु यह कुचक्र, भाषण रूप धारण कर रहा है।

उत्तङ्क―मैं सब सुन चुका हूँ; और जानता हूँ कि कुछ दुर्बुद्धियो ने यादवी सरमा, तक्षक तथा आपके पुरोहित काश्यप के साथ मिलकर एक षड्यन्त्र रचा है। किन्तु आपको इससे भयभीत न होना चाहिए।

जनमेजय―भगवन्, यह तो ठोक है; पर मुझसे अनजान मे जो ब्रह्महत्या हो गई, उससे मैं और भी खिन्न हूँ। काश्यप मुझ पर अभियोग लगाते है कि मैंने जान बूझ कर यह ब्रह्महत्या की। ब्राह्मण वर्ग और आरण्यक मण्डल भी इसमे कुछ असन्तुष्ट हो गया है। पौर, जानपद आदि सब लोगो मे यह आतङ्क फैलाया जा रहा है कि राजा यौवन मद से स्वेच्छाचारी हो गया है; वह किसी की बात नहीं सुनता। इधर जब मैं आपसे तक्षक द्वारा अपने पिता के निधन का गुप्त रहस्य सुनता हूँ, तो क्रोध से मेरी धमनियाँ बिजली की तरह तड़पने लगती हैं। किन्तु मैं क्या करूँ!