पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/९६

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तीसरा दृश्य
स्थान—पहाड़ की तराई
[नाग सैनिक खड़े हैं। मनसा और उसकी दो सखियाँ गाती है]


क्या सुना नहीं कुछ, अभी पड़े सोते हो।
क्यों निज स्वतन्त्रता की लज्जा खोते हो॥
प्रति हिसा का विष तुम्हें नहीं चढ़ता क्या।
इतने शीतल हो, वेग नहीं बढ़ता क्या॥
जब दर्प भरा अरि चढ़ा चला आता है,
तब भी तुममें आवेश नहीं आता है।
जातीय मान के शव पर क्यों रोते हो।
क्यों निज स्वतन्त्रता की लज्जा खोते हो॥
धिक्कार और अवहेलना की बलिहारी।
सचमुच तुम सब हो पुरुष या कि हो नारी॥
चल जाय दासता की न कहीं यह छलना।
देखते तुम्हारे लान्छित हों कुल ललना।
जातीय क्षेत्र में अयश बीज बोते हो।
क्यों निज स्वतन्त्रता की लज्जा खोते हो॥
लज्जा मेरी या अपना सुख रखना है।
परिणाम सुखद है, कटवा फल चखना है॥