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जनमेजय का नाग-यज्ञ

मणिमाला―बूआ, ऐसा न कहो। भाई आस्तीक―।

मनसा―लड़की, चुप रह! मुझे तू अभी नहीं पहचानती।

आस्तीक―मै किस प्रकार इस जाति की सहायता करूँगा यह मै जानता हूँ। तो फिर माँ, मै प्रणाम करता हूँ। तलवार लेकर तो नहीं, पर यदि हो सका तो मैं दूसरे प्रकार से यह विवाद मिटाऊँगा। इस क्रोध को बाढ़ में मैं बाँध बनूँँगा, चाहे फिर मै ही क्यो न तोड़कर बहा दिया जाऊँ।

[ जाता है ]
 

मणिमाला―फिर मुझे क्या आज्ञा है?

तक्षक―जा बेटी, तू घर जा।

[ मणिमाला जाती है ]
 

मनसा―सावधान! वह अश्व आ रहा है।

[अश्व के साथ आर्य सैनिकों का गाते हुआ प्रवेश ]

पद-दलित किया है जिसने भूमण्डल को।
निज ह्नेपा से चौकाता आखण्डल को॥

वह विज्यी याज्ञिक अश्व चला है आगे।
हम सब हैं रक्षक, देख शत्रुगण भागे॥

यह अरुण पताका नभ तक है फहराती।
जो विजय गीत मिल मलय पवन से गाती॥

जय आर्य भूमि की, आर्य जाति की जय हो।

अरिगण को भय हो, विजयी जनमेजय हो॥

मनसा―छीन लो, इस अश्व को छीन लो!