पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/३२

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जीवन चरित्र।


परमार्थ अच्छा है लेकिन स्वार्थके बिना परमार्थ हो कैसे सकता है।

ऐसी दशा में आवश्यकता थी कि पाश्चात्य देश हमको स्वार्थ सिखलावैं और हम उनको पारलौकिक विषयोंकी शिक्षा दें। ताता महोदयने पाश्चात्य देशोंसे उद्योग, धंधेकी बात सीखी। जलसे बिजली निकालकर रुपये पैदा करनेकी युक्ति और उसका व्यापार भारतके लिये बिल्कुल नई बात है। इस देश में एक खराब प्रथा यह चल गई है कि बेटा बापके चले हुए रास्तेको नहीं छोड़ेगा। नई बात और नये रोजगारको तलाश करना हम जानतेही नहीं हैं। यही कारण है कि एक एक व्यवसायमें बहुत से आदमी लगकर अपनी और दूसरोंकी हानि करते हैं। हमारे अधिकतर व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें एक भाई दूसरे भाईका रुपया खींचकर अपनी जेबमें धरता है। ऐसे व्यवसायोंसे देश को कुछ भी फायदा नहीं होता है। ताता महोदयने जितने कारोबार उठाये अपने ढंगके वे सब नये थे, उन सबमें देशका उपकार था। बिजलीकी कम्पनी ताताजीके व्यवसायोंमें सबसे अधिक महत्वकी बात है और इस देशमें पहली चीज है। पहले लोगोंका ख्याल था कि संसारमें चीरापूंजीके बराबर पानी और किसी स्थानमें नहीं बरसता है। लेकिन अनुभवी लोगोंके विचारसे पश्चिमीय घाटपर्वतके मुकाबलेमें चीरापुंजीमें बारिश नहीं होती है। यह अगाध जल बहकर अरब सागरके खारे पानीमें मिल जाता था। कोई इसको काममें लानेवाला नहीं था और न