सोच विचार कर आपने एक ऐसे विद्यालयके खोलनेका विचार किया जहां थोड़े खर्च घर रहते हुए विद्यार्थी वे बातें सीखजायं जिनके लिये हजारों मील दूर जाकर अपना तन, मन, धन खर्च कर अनजान होनेकी वजहसे इधर उधर ठोकरें खाकर अपमानित और निरुत्साहित होते हैं। विद्यालयकी स्थापना पर विचार करनेके लिये बड़े बड़े विद्वानोंकी एक कमेटी बनाई गई। कमेटीके मंत्री मिस्टर वरजोरजी पादशा पाश्चात्य युनिवर्सीिटेयोंके देखने के लिये तैनात किये गये। तखमीना किया गया कि ३० लाख रुपयों में काम शुरू हो सकता है।
सन् १८९८ ई॰ में स्कीम लार्ड कर्जन साहबके सामने पेश हुई। सबसे पहले स्थानका झगड़ा तै करना था। ताताजी बंबईको पसंद करते थे और कितने अन्य लोग कई दूसरे स्थानोंको पसंद करते थे। अंतमें मदरास सूबेका बंगलोर स्थान पसंद हुआ। इसके बाद मैसूर राज्यकी सहायताके लिये लिखा पढ़ी को गई। कमेटीने रातदिन जी जानसे कोशिशकी, लेकिन बहुत दिनोंतक लार्ड कर्जन महोदयकी कृपासे काम शुरू न हो सका।
कई सालके बाद महाराज मैसूरने ५ लाखका दान किया। इसके अलावे मैसूर राज्यने ३७१ एकड़ जमीन भी दी। इसके लिये राज्यके दीवान भारतमाताके सपूत सर शेषाद्रि ऐयरकी जितनी प्रशंसाकी जाय थोड़ी है। हर्षकी बात है कि अंगरेजी सरकारने भी ४ लाख रुपये देकर अपनी उदारता दिखलाई। मैसूरने दस बरसके लिये ३० हजार रुपये सालाना मंजूर किया