पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१०६

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छुरा भोंक दूंगा! छुरा भोंकेगा! मार डाल हत्यारे! मैं आज अपनी और तेरी जान दूंगी और लूँगी-तुझे भी फ़ाँसी पर चढ़वाकर छोडूंगी! एक चिल्लाहट और धक्कम-धक्का का शब्द हुआ। घीसू से अब न रहा गया, उसने बगल में दरवाजे पर धक्का दिया, खुला हुआ था, भीतर घूम-फिरकर पलक मारते-मारते घीसू कमरे में जा पहुँचा। बिंदो गिरी हुई थी, और एक अधेड़ मनुष्य उसका जूड़ा पकड़े था। घीसू की गुलाबी आँखों से खून बरस था। उसने कहा-हैं। यह औरत है...इसे... मारनेवाले ने कहा-तभी तो, इसी के साथ यहाँ तक आई हो! तो, यह तुम्हारा यार आ गया। बिंदो ने घूमकर देखा-घीसू! वह रो पड़ी। अधेड़ ने कहा-ले, चली जा, मौज कर! आज से मुझे अपना मुँह मत दिखाना! घीसू ने कहा-भाई, तुम विचित्र मनुष्य हो। लो, चला जाता हूँ। मैंने तो छुरा भोंकने इत्यादि और चिल्लाने का शब्द सुना, इधर चला आया। मुझे तुम्हारे झगड़े से क्या सम्बन्ध! मैं कहाँ ले जाऊँगा भाई! तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। लो, मैं जाता हूँ कहकर घीसू जाने लगा। बिंदो ने कहा-ठहरो! घीसू रुक गया। बिंदो ने फिर कहा-तो जाती हूँ,-अब इसी के संग...। हाँ-हाँ, यह भी क्या पूछने की बात है! बिंदो चली, घीसू भी पीछे-पीछे बगीचे के बाहर निकल आया। सड़क सुनसान थी। दोनों चुपचाप चले। गोदौलिया चौमुहानी पर आकर घीसू ने पूछा-अब तो तुम अपने घर चली जाओगी! __ कहाँ जाऊँगी! अब तुम्हारे घर चलूँगी। घीसू बड़े असमंजस में पड़ा। उसने कहा-मेरे घर कहाँ? नंदू बाबू की एक कोठरी है, वहीं पड़ा रहता हूँ, तुम्हारे वहाँ रहने की जगह कहाँ! बिंदो ने रो दिया। चादर के छोर से आँसू पोंछती हुई, उसने कहा-तो फिर तुमको इस समय वहाँ पहुँचने की क्या पड़ी थी। मैं जैसा होता, भुगत लेती! तुमने वहाँ पहुँचकर मेरा सब चौपट कर दिया-मैं कहीं की न रही! सड़क पर बिजली के उजाले में रोती हुई बिंदो से बात करने में घीसू का दम घुटने लगा। उसने कहा-तो चलो। दूसरे दिन, दोपहर को थैली गोविंदराम के घाट पर रखकर घीसू चुपचाप बैठा रहा। गोविंदराम की बूटी बन रही थी। उन्होंने कहा-घीसू, आज बूटी लोगे? घीसू कुछ न बोला। ____गोविंदराम ने उसका उतरा हुआ मुँह देखकर कहा-क्या कहें घीसू! आज तुम उदास क्यों हो?