पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१३

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विलायती पिक का वृचिस पहने, बूट चढ़ाए, हण्टिग कोट, धानी रंग का साफा, अंग्रेज़ी-हिन्दुस्तानी का महासम्मेलन बाबू साहब के अंग पर दिखाई पड़ रहा है। गौर वर्ण, उन्नत ललाट–उनकी आभा को बढ़ा रहे हैं। स्टेशन मास्टर से सामना होते ही शेकहैंड करने के उपरान्त बाबू साहब से बातचीत होने लगी।

स्टेशन मास्टर-आप इस वक्त कहाँ से आ रहे हैं?

मोहनलाल-कारिन्दों ने इलाके में बड़ा गड़बड़ मचा रक्खा है, इसलिए मैं कुसुमपुर -जो हमारा इलाका है-इंस्पेक्शन के लिए जा रहा हूँ।

स्टेशन मास्टर-फिर कब पलटियेगा? मोहनलाल-दो रोज में। अच्छा, गुड ईवनिंग!

स्टेशन मास्टर, जो लाइन-क्लियर दे चुके थे, गुड ईवनिंग करते हुए अपने ऑफिस में घुस गए।

बाबू मोहनलाल अंग्रेज़ी काठी से सजे हुए घोड़े पर, जो पूर्व ही स्टेशन पर खड़ा था, सवार होकर चलते हुए।

 

सरल स्वभाव ग्रामवासिनी कुलकामिनीगण का सुमधुर संगीत धीरे-धीरे आम्रकानन में से निकलकर चारों ओर गूंज रहा है। अंधकार गगन में जुगनू-तारे चमक-चमकर चित्त को चंचल कर रहे हैं। ग्रामीण लोग अपना हल कन्धे पर रखे, बिरहा गाते हुए, बैलों की जोड़ी के साथ, घर की ओर प्रत्यावर्त्तन कर रहे हैं।

एक विशाल तरुवर की शाखा में झूला पड़ा हुआ है, उस पर चार महिलाएँ बैठी हैं और पचासों उनको घेरकर गाती हुई घूम रही हैं। झूले के पेंग के साथ 'अबकी सावन सइयाँ घर रहु रे' की सुरीली पचासों कोकिल कण्ठ से निकली हुई तान पशुगणों को भी मोहित कर रही हैं। बालिकाएँ स्वच्छन्द भाव से क्रीड़ा कर रही हैं। अकस्मात् अश्व के पद-शब्द ने उन सरला कामिनियों को चौंका दिया। वे सब देखती हैं, तो हमारे पूर्व-परिचित बाबू मोहनलाल घोड़े को रोककर उस पर से उतर रहे हैं। वे सब उनका भेष देखकर घबड़ा गईं और आपस में कुछ इंगित करके चुप रह गईं।

बाबू मोहनलाल ने निस्तब्धता को भंग किया और बोले-भद्रे! यहाँ से कुसुमपुर कितनी दूर है? और किधर से जाना होगा? एक प्रौढ़ा ने सोचा कि 'भद्रे' कोई परिहास शब्द तो नहीं है, पर वह कुछ कह न सकी, केवल एक ओर दिखाकर बोली-यहाँ से डेढ़ कोस तो बाय, इहै पैंड़वा जाई।

बाबू मोहनलाल उसी पगडण्डी से चले। चलते-चलते उन्हें भ्रम हो गया और वह अपनी छावनी का पथ छोड़कर दूसरे मार्ग से जाने लगे। मेघ घिर आए, जल वेग से बरसने लगा, अँधकार और घना हो गया। भटकते-भटकते वह एक खेत के समीप पहँचे; वहाँ उस हरे-भरे खेत में एक ऊंचा और बड़ा मचान था, जो कि फूस से छाया हुआ था और समीप ही में एक छोटा-सा कच्चा मकान था।