पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१४१

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सकेगी।' 'तो तुम क्या कहना चाहते हो?' ठाकुर साहब अपने में आ रहे थे, फिर भी घटनाचक्र से विवश थे। ___ 'अब यह आपके पास रह सकती है। भूरे इसे लेकर हम लोगों के संग नहीं रह सकता।' मैकू पूरा खिलाड़ी था। उसके सामने उस अंधकार में रुपये चमक रहे थे। ठाकुर को अपने अहंकार का आश्रय मिला। थोड़ा-सा विवेक, जो उस अंधकार में झिलमिला रहा था, बुझ गया। उन्होंने कहा 'तुम क्या चाहते हो?' 'एक हजार।' 'चलो, मेरे साथ।'-कहकर बेला का हाथ पकड़कर ठाकुर ने घोड़े को आगे बढ़ाया। भूरे कुछ भुनभुना रहा था; पर मैकू ने उसे दूसरी ओर भेजकर ठाकुर का संग पकड़ लिया। बेला रकाब पकड़े चली जा रही थी। दूसरे दिन कंजरों का दल उस गाँव से चला गया। उपरोक्त घटना को कई साल बीत गये। बेला ठाकुर साहब की एकमात्र प्रेमिका समझी जाती है। अब उसकी प्रतिष्ठा अन्य कुल-वधुओं की तरह होने लगी है। नये उपकरणों से उसका घर सजाया गया है। उस्तादों से गाना सीखा है। गढ़ के भीतर ही उसकी छोटी-सी साफ-सुथरी हवेली है। ठाकुर सहाब की उमंग की रातें वहीं कटती हैं। फिर भी ठाकुर कभी-कभी प्रत्यक्ष देख पाते कि बेला उनकी नहीं है! वह न जाने कैसे एक भ्रम में पड़ गये। बात निबाहने की आ पड़ी। एक दिन एक नट आया। उसने अनेक तरह के खेल दिखलाये। उसके साथ उसकी स्त्री थी, वह घूघट ऊँचा नहीं करती थी। खेल दिखलाकर जब अपनी पिटारी लेकर जाने लगा, तो कुछ मनचले लोगों ने पूछा 'क्यों जी, तुम्हारी स्त्री कोई खेल नहीं करती क्या?' 'करती तो है सरकार! फिर किसी दिन दिखलाऊँगा।' कहकर वह चला गया; किन्तु उसकी बाँसुरी की धुन बेला के कानों में उन्माद का आह्वान सुना रही थी। पिंजड़े की वनविहंगनी को वसन्त की फूली हुई डाली का स्मरण हो आया था। दूसरे दिन गढ़ में भारी जमघट लगा। गोली का खेल जम रहा था। सब लोग उसके हस्त-कौशल में मुग्ध थे। सहसा उसने कहा 'सरकार! एक बड़ा भारी दैत्य आकाश में आ गया है, उससे लड़ने जाता हूँ, मेरी स्त्री की रक्षा आप लोग कीजियेगा।' गोली ने एक डोरी निकालकर उसको ऊपर आकाश की ओर फेंका। वह सीधी तन गयी। सबके देखते-देखते गोली उसी के सहारे आकाश में चढ़कर अदृश्य हो गया। सब लोग मुग्ध होकर भविष्य की प्रतीक्षा कर रहे थे। किसी को यह ध्यान नहीं रहा कि स्त्री अब कहाँ