पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१४६

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साधकर उसने गोली चला दी। दोनों तरफ से गोलियाँ चलीं। नन्दराम की जाँघ को छीलती हुई एक गोली निकल गयी और सब बेकार रहीं। उधर दो वजीरियों की मृत्यु हुई। तीसरा कुछ भयभीत होकर भाग चला। तब नन्दराम ने कहा-'नन्दराम को नहीं पहचानता था? ले, तू भी कुछ लेता जा।।' उस वजीरी के भी पैर में गोली लगी। वह बैठ गया और नन्दराम अपने ऊँट पर घर की ओर चला। सलीम नन्दराम के गाँव से धर्मोन्माद के नशे में चूर इन्हीं सहधर्मियों में आकर मिल गया था। उसके भाग्य से नन्दराम की गोली उसे नहीं लगी। वह झाड़ियों में छिप गया। घायल वजीरी ने उससे कहा-'तू परदेशी भूखा बनकर इसके साथ जाकर घर देख आ। इसी नाले से उतर जा। वह तुझे आगे मिल जाएगा।' सलीम उधर ही चला। नन्दराम अब निश्चिन्त होकर धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रहा था। सहसा उसे कराहने का शब्द सुनाई पड़ा। उसने ऊँट रोककर सलीम से पूछा-'क्या है भाई? तू कौन है?' सलीम ने कहा-'भूखा परदेशी हूँ। चल भी नहीं सकता। एक रोटी और दो चूट पानी!' नन्दराम ने ऊँट बैठाकर उसे अच्छी तरह देखते हुए फिर पूछा-'तुम यहाँ कैसे आ गये?' 'मैं हिन्दुस्तान से हिजरत करके चला आया हूँ।' 'ओह! भले आदमी, ऐसी बातों से भी कोई अपना घर छोड़ देता है? अच्छा, आओ, मेरे ऊँट पर बैठ जाओ।' सलीम बैठ गया। दिन ढलने लगा था। नन्दराम के ऊँट के गले के बड़े-बड़े घुघरू उस निस्तब्ध शान्ति में सजीवता उत्पन्न करते हुए बज रहे थे। उल्लास से भरा हुआ नन्दराम उसी ताल पर कुछ गुनगुनाता जा रहा था। उधर सलीम कुढ़कर मन-ही-मन भुनभुनाता जा रहा था; परन्तु ऊँट चुपचाप अपना पथ अतिक्रमण कर रहा था। धीरे-धीरे बढ़नेवाले अंधकार में वह अपनी गति से चल रहा था। सलीम सोचता था-'न हुआ पास में एक छुरा, नहीं तो यहीं अपने साथियों का बदला चुका लेता!' फिर वह अपनी मूर्खता पर झुंझलाकर विचार करने लगा-'पागल सलीम! तू उसके घर का पता लगाने आया है न।' इसी उधेड़बुन में कभी अपने को पक्का धार्मिक, कभी सत्य में विश्वास करनेवाला, कभी शरण देनेवाले सहधर्मियों का पक्षपाती बन रहा था। सहसा ऊँट रुका और घर का किवाड़ खुल पड़ा। भीतर से जलते हुए दीपक के प्रकाश के साथ एक सुन्दर मुख दिखाई पड़ा। नन्दराम ऊँट बैठाकर उतर पड़ा। उसने उल्लास से कहा-'प्रेमो!' प्रेमकुमारी का गला भर आया था। बिना बोले ही उसने लपककर नन्दराम के दोनों हाथ पकड़ लिए। सलीम ने आश्चर्य से प्रेमा को देखकर चीत्कार करना चाहा; पर वह सहसा रुक गया। उधर प्यार से प्रेमा के कन्धों को हिलाते हए नन्दराम ने उसका चौंकना देख लिया। नन्दराम ने कहा-'प्रेमा! हम दोनों के लिए रोटियाँ चाहिए! यह एक भूखा परदेशी है।