पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१५३

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'आप वहाँ क्यों गये थे?' 'मैं इसका जवाब न दूँ, तो?' नूरी चुप रही। याकूब खाँ ने कहा-'तुम जानना चाहती हो?' 'न बताइये।' 'बताऊँ तो मुझे...' 'आप डरते हैं, तो न बताइये।' 'अच्छा, तो तुम सच बताओ कि कहाँ की रहनेवाली हो?' 'मैं काश्मीर में पैदा हुई हूँ।' याकूब खाँ अब उसके समीप ही बैठ गया। उसने पूछा-'कहाँ!' 'श्रीनगर के पास ही मेरा घर है।' 'यहाँ क्या करती हो?' 'नाचती हूँ। मेरा नाम नूरी है।' 'काश्मीर जाने को मन नहीं करता?' 'नहीं।' 'क्यों?' 'वहाँ जाकर क्या करूँगी। सुलतान यूसुफ खाँ ने मेरा घर-बार छीन लिया है। मेरी माँ बेड़ियों में जकड़ी हुई दम तोड़ती होगी या मर गयी होगी।' ___'मैं कहकर छडवा दूंगा, तम यहाँ से चलो।' 'नहीं, मैं यहाँ से नहीं जा सकती, पर शाहजादा साहब, आप वहाँ क्यों गये थे, मैं जान गयी।' 'नूरी, तुम जान गयी हो, तो अच्छी बात है। मैं भी बेड़ियों में पड़ा हूँ। यहाँ अकबर के चंगुल में छटपटा रहा हूँ। मैं कल रात को उसी के कलेजे में कटार भोंक देने के लिए गया था।' 'शहंशाह को मारने के लिए-?' भय से चौंककर नूरी ने कहा। 'हाँ नूरी, वहाँ तुम न आतीं, तो मेरा काम न बिगड़ता। काश्मीर को हड़पने की उसकी...' याकूब रुककर पीछे देखने लगा। दूर कोई चला जा रहा था। नूरी भी उठ खड़ी हुई। दोनों और नीचे झील की ओर उतर गये। जल के किनारे बैठकर नूरी ने कहा-'अब ऐसा न करना।' 'क्यों न करूँ? मुझे काश्मीर से बढ़कर और कौन प्यारा है? मैं उसके लिए क्या नहीं कर सकता?' यह कहकर याकूब ने लम्बी साँस ली। उसका सुन्दर मुख वेदना से विवर्ण हो गया। नूरी ने देखा, वह प्यार की प्रतिमा है। उसके हृदय में प्रेम- लीला करने की वासना बलवती हो चली थी। फिर वह एकान्त और वसन्त की नशीली रात! उसने कहा-'आप चाहे काश्मीर को प्यार करते हों, पर कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं, जो आपको प्यार करते हों!' 'पागल! मेरे सामने एक ही तस्वीर है। फूलों से भरी, फलों से लदी हुई, सिन्ध और झेलम की घाटियों की हरियाली! मैं इस प्यार को छोड़कर दूसरी ओर...?'