पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

आज जीवन का क्या रूप होता? आशा से भरी संसार-यात्रा किस सुन्दर विश्रामभवन में पहुँचाती? अब तक संसार के कितने सुन्दर रहस्य फूलों की तरह अपनी पंखुड़ियाँ खोल चुके होते? अब प्रेम करने का दिन तो नहीं रहा। हृदय में इतना प्यार कहाँ रहा, जो दूंगी, जिससे यह लूंठ हरा हो जाएगा। नहीं। नूरी ने मोह का जाल छिन्न कर दिया है। वह अब उसमें न पड़ेगी। तो भी इस दयनीय मनुष्य की सेवा; किन्तु यह क्या? याकूब हिचकियाँ ले रहा था। उसकी पुकार का सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिला। निर्मम-हृदय नूरी ने विलम्ब कर दिया। वह विचार करने लगी थी और याकूब को इतना अवसर नहीं था! । नूरी उसका सिर हाथों पर लेकर उसे लिपटाने लगी। साथ ही अभागे याकूब के खुले हुए प्यासे मुँह में नूरी के आँसू टपाटप गिरने लगे।