पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१६७

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माँ से पूछते थे—'माँ, आज हलुएवाला नहीं आया।' वह कहती–'चुप बेटे!–' सड़कें सूनी पड़ी थीं। तिलंगों की कम्पनी के आगे-आगे कुबरा मौलवी कभी-कभी, आता-जाता दिखाई पड़ता था। उस समय खुली हुई खिड़कियाँ बन्द हो जाती थीं। भय और सन्नाटे का राज्य था। चौक में चिथरूसिंह की हवेली अपने भीतर काशी की वीरता को बन्द किये कोतवाल का अभिनय कर रही थी। इसी समय किसी ने पुकारा-'हिम्मतसिंह!' खिड़की में से सिर निकालकर हिम्मतसिंह ने पूछा-'कौन?' 'बाबू नन्हकूसिंह!' 'अच्छा, तुम अब तक बाहर ही हो?' 'पागल! राजा कैद हो गये हैं। छोड़ दो इन सब बहादुरों को! हम एक बार इनको लेकर शिवालय-घाट जाएँ।' 'ठहरो'-कहकर हिम्मतसिंह ने कुछ आज्ञा दी, सिपाही बाहर निकले। नन्हकू की तलवार चमक उठी। सिपाही भीतर भागे। नन्हकू ने कहा-'नमक-हरामो! चूड़ियाँ पहन लो।' लोगों के देखते-देखते नन्हकूसिंह चला गया। कोतवाली के सामने फिर सन्नाटा हो गया। नन्हकू उन्मत्त था। उसके थोड़े-से साथी उसकी आज्ञा पर जान देने के लिए तुले थे। वह नहीं जानता था कि राजा चेतसिंह का क्या राजनैतिक अपराध है? उसने कुछ सोचकर अपने थोड़े-से साथियों को फाटक पर गड़बड़ मचाने के लिए भेज दिया। इधर अपनी डोंगी लेकर शिवालय की खिड़की के नीचे धारा काटता हुआ पहुँचा। किसी तरह निकले हुए पत्थर में रस्सी अटकाकर, चंचल डोंगी को उसने स्थिर किया और बन्दर की तरह उछलकर खिड़की के भीतर हो रहा। उस समय वहाँ राजमाता पन्ना और राजा चेतसिंह से बाबू मनियारसिंह कह रहे थे—'आपके यहाँ रहने से, हम लोग क्या करें, यह समझ में नहीं आता। पूजा-पाठ समाप्त करके आप रामनगर चली गयी होतीं, तो यह...' । तेजस्विनी पन्ना ने कहा- 'मैं रामनगर कैसे चली जाऊँ?' . मनियारसिंह दुखी होकर बोले- 'कैसे बताऊँ? मेरे सिपाही तो बन्दी हैं।' इतने में फाटक पर कोलाहल मचा। राज-परिवार अपनी मन्त्रणा में डूबा था कि ह का आना उन्हें मालूम हआ। सामने का द्वार बन्द था। नन्हकूसिह ने एक बार गंगा की धारा को देखा उसमें एक नाव घाट पर लगने के लिए लहरों से लड़ रही थी। वह प्रसन हो उठा। इसी की प्रतीक्षा में वह रुका था। उसने जैसे सबको सचेत करते हुए कहा -'महारानी कहाँ हैं?' सबने घूमकर देखा-'अपरिचित और वीर-मूर्ति! शस्त्रों से लदा हुआ पूरा देव! चेतसिंह ने पूछा-'तुम कौन हो?' 'राज-परिवार का एक बिना दाम का सेवक!' पन्ना के मुँह से हल्की-सी एक साँस निकलकर रह गई। उसने पहचान लिया। इतने वर्षों बाद! वही नन्हकूसिंह। मनियारसिंह ने पूछा-'तुम क्या कर सकते हो?' 'मैं मर सकता हूँ! पहले महारानी को डोंगी पर बिठाइए। नीचे दूसरी डोंगी पर अच्छे