पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/२६

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और झाड़ियों का कुछ भी ध्यान न करके सीधा अपने मार्ग का अनुसरण कर रहा था। वह युवक फिर उसी खिड़की के सामने पहुंचा और जाकर अपने पूर्व-परिचित शिलाखण्ड पर बैठ गया और पुन: वही क्रिया आरम्भ हुई। धीरे-धीरे एक सैनिक पुरुष ने आकर उस युवक के कन्धे पर अपना हाथ रखा।

युवक चौंक उठा और क्रोधित होकर बोला-तुम कौन हो?

आगन्तुक हँस पड़ा और बोला—यही तो मेरा भी प्रश्न है कि तुम कौन हो? और क्यों इस अन्तःपुर की खिड़की के सामने बैठे हो और तुम्हारा क्या अभिप्राय है?

युवक-मैं यहाँ घूमता हूँ और यहीं मेरा मकान है। मैं जो यहाँ बैठा हूँ, मित्र! वह बात यह है कि मेरा एक मित्र इसी प्रकोष्ठ में रहता है; मैं कभी-कभी उसका दर्शन पा जाता हूँ और अपने चित्त को प्रसन्न करता हूँ।

सैनिक–पर मित्र! तुम नहीं जानते कि यह राजकीय अन्तःपुर है, तुम्हें ऐसे देखकर तुम्हारी क्या दशा हो सकती है? और महाराज तुम्हें क्या समझेंगे?

युवक-जो कुछ हो; मेरा कुछ असत् अभिप्राय नहीं है, मैं तो केवल सुन्दर रूप का दर्शन ही निरन्तर चाहता हूँ और यदि महाराज भी पूछे तो यही कहूँगा।

सैनिक-तुम जिसे देखते हो, वह स्वयं राजकुमारी है और तुम्हें कभी नहीं चाहती। अतएव तुम्हारा यह प्रयास व्यर्थ है।

युवक-क्या वह राजकुमारी है? तो चिन्ता क्या! मुझे तो केवल देखना है; मैं बैठे-बैठे देखा करूँगा, पर तुम्हें यह कैसे मालूम कि वह मुझे नहीं चाहती?

सैनिक-प्रमाण चाहते हो तो (एक पत्र देकर) यह देखो! युवक उसे लेकर पढ़ता है। उसमें लिखा था-

"युवक!

तुम क्यों अपना समय व्यर्थ व्यतीत करते हो? मैं तुमसे कदापि नहीं मिल सकती। क्यों महीनों से यहाँ बैठे-बैठे अपना शरीर नष्ट कर रहे हो, मुझे तुम्हारी अवस्था देखकर दया आती है। अत: तुमको सचेत करती हूँ, फिर कभी यहाँ मत बैठना।

वही

जिसे तुम देखा करते हो!"

 

युवक कुछ देर के लिए स्तम्भित हो गया। सैनिक सामने खड़ा था। अकस्मात् युवक उठकर खड़ा हो गया और सैनिक का हाथ पकड़कर बोला-मित्र! तुम हमारा कुछ उपकार कर सकते हो? यदि करो, तो कुछ विशेष परिश्रम न होगा।

सैनिक-कहो, क्या है? यदि हो सकेगा, तो अवश्य करूँगा।

तत्काल उस युवक ने अपनी उँगली एक पत्थर से कुचल दी और अपने फटे वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर तिनका लेकर उसी रक्त में टुकड़े पर कुछ लिखा, और उस सैनिक के हाथ में देकर कहा–यदि हम न रहें, तो इसको उस निष्ठुर के हाथ में दे देना। बस और कुछ