पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/२७

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नहीं।

इतना कहकर युवक ने पहाड़ी पर से कूदना चाहा; पर सैनिक ने उसे पकड़ लिया, और कहा–रसिया! ठहरो!

युवक अवाक् हो गया; क्योंकि अब पाँच प्रहरी सैनिक के सामने सिर झुकाए खड़े थे और पूर्व सैनिक स्वयं अर्बुदगिरि के महाराज थे।

महाराज आगे हुए और सैनिकों के बीच में रसिया। सब सिंहद्वार की ओर चले। किले के भीतर पहुँचकर रसिया को साथ में लिए हुए महाराज एक प्रकोष्ठ में पहुँचे। महाराज ने प्रहरी को आज्ञा दी कि महारानी और राजकुमारी को बुला लाओ। वह प्रणाम कर चला गया।

महाराज-क्यों बलवन्त सिंह! तुमने अपनी यह क्या दशा बना रखी है? रसिया-(चौंककर) महाराज को मेरा नाम कैसे ज्ञात हुआ?

महाराज-बलवन्त! मैं बचपन से तुम्हें जानता हूँ और तुम्हारे पूर्व पुरुषों को भी जानता हूँ।

रसिया चुप हो गया। इतने में महारानी भी राजकुमारी को साथ लिए हुए आ गईं। महारानी ने प्रणाम कर पूछा-क्या आज्ञा है?

महाराज-बैठो, कुछ विशेष बात है। सुनो और ध्यान से उत्तर दो। यह युवक जो तुम्हारे सामने बैठा है, एक उत्तम क्षत्रिय कुल का है और मैं इसे जानता हूँ। यह हमारी राजकुमारी के प्रणय का भिखारी है। मेरी इच्छा है कि इससे उसका ब्याह हो जाए।

राजकुमारी, जिसने कि आते ही युवक को देख लिया था और जो संकुचित होकर इस समय महारानी के पीछे खड़ी थी, यह सुनकर और भी संकुचित हुई, पर महारानी का मुख क्रोध से लाल हो गया। वह कड़े स्वर में बोली-क्या आपको खोजते-खोजते मेरी कुसुमकुमारी कन्या के लिए यही वर मिला है? वाह! अच्छा जोड़ मिलाया। कंगाल और उसके लिए निधि; बन्दर और उसके गले में हार; भला यह भी कहीं सम्भव है? आप शीघ्र ही अपने भ्रान्तिरोग की औषधि कर डालिए। यह भी कैसा परिहास है! (कन्या से) चलो बेटी, यहाँ से चलो।


महाराज-नहीं, ठहरो और सुनो। यह स्थिर हो चुका है कि राजकुमारी का ब्याह बलवन्त से होगा, तुम इसे परिहास मत जानो।

अब जो महारानी ने महाराज के मुख की ओर देखा, तो वह दृढ़प्रतिज्ञ दिखाई पड़े। निदान विचलित होकर महारानी ने कहा-अच्छा, मैं भी प्रस्तुत हो जाऊंगी, पर इस शर्त पर कि जब यह पुरुष अपने बाहुबल से उस झरने के समीप से नीचे तक एक पहाड़ी रास्ता काटकर बना ले, उसके लिए समय अभी से केवल प्रातःकाल तक का देती हूँ-जब तक कि कुक्कुट का स्वर सुनाई न पड़े। तब अवश्य मैं भी राजकुमारी का ब्याह इसी से कर दूंगी।

महाराज ने युवक की ओर देखा, जो कि निस्तब्ध बैठा हुआ सुन रहा था। वह उसी क्षण उठा और बोला-मैं प्रस्तुत हूँ, पर कुछ औजार और मसाले के लिए थोड़े विष की आवश्यकता है।

उसकी आज्ञानुसार सब वस्तुएँ उसे मिल गईं और वह शीघ्रता से उसी झरने की ओर