पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/५३

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औरंगजेब ने लिया। फिर पूछा-बहन, क्या तुम हमें माफ करोगी?

जहाँनारा ने खुली हुई आँखों को आकाश की ओर उठा दिया। उस समय उनमें से एक स्वर्गीय ज्योति निकल रही थी और वह वैसे ही देखती की देखती रह गई। औरंगजेब उठा और उसने आँसू पोंछते हुए पुरजे को पढ़ा। उसमें लिखा था-

बगैर सब्ज़ः न पोशद कसे मजार मरा।
कि क़ब्रपोश ग़रीबाँ हमीं गयाह बसस्त॥

भावार्थ: मुझ गरीब की कब्र को हरियाली की चादर (क़ब्रपोश) ही नसीब होनी है।