लग रही थी। मैं कमरे में पड़ा अँगड़ाई ले रहा था। दुलारे ने आकर कहा-ईरानी-नहीं-नहीं बलूची आए हैं। मैंने पूछा कैसे ईरानी और बलूची?
वही जो मूगा, फिरोजा, चारयारी बेचते हैं, सिर में रूमाल बाँधे हुए।
मैं उठ खड़ा हुआ, दालान में आकर देखता हूँ, तो एक बीस बरस के युवक के साथ लैला। गले में चमड़े का बैग, पीठ पर चोटी, छींट का रूमाल। एक निराला आकर्षक चित्र! लैला ने हँसकर पूछा-बाबू, चारयारी लोगे?
चारयारी?
हाँ बाबू! चारयारी! इसके रहने से इसके पास सोना, अशर्फी रहेगा। थैली कभी खाली न होगी और बाबू! इससे चोरी का माल बहुत जल्द पकड़ा जाता है।
साथ ही युवक ने कहा-ले लो बाबू! असली चारयारी; सोना का चारयारी एक बाबू के लिए लाया था। वह मिला नहीं।
मैं अब तक उन दोनों की सुरमीली आँखों को देख रहा था। सुरमे का घेरा गोरे-गोरे मुँह पर आँख की विस्तृत सत्ता का स्वतन्त्र साक्षी था। पतली लम्बी गर्दन पर खिलौने-सा मुँह टपाटप बोल रहा था! मैंने कहा-मुझे तो चारयारी नहीं चाहिए।
किन्तु वहाँ सुनता कौन है, दोनों सीढ़ी पर बैठ गए थे और लैला अपना बैग खोल रही थी। कई पोटलियाँ निकलीं, सहसा लैला के मुँह का रंग उड़ गया। वह घबराकर कुछ अपनी भाषा में कहने लगी युवक उठ खड़ा हुआ। मैं कुछ न समझ सका। वह चला गया। अब लैला ने मुस्कराते हुए, बैग में से वही पत्र निकाला। मैंने कहा-इसे तो मैं पढ़ चुका हूँ।
इसका मतलब!
वह तुम्हारी चारयारी खरीदने फिर आवेगा। यही इसमें लिखा है—मैंने कहा। बस! इतना ही?
और भी कुछ है।
क्या बाबू?
और जो उसने लिखा है, वह मैं नहीं कह सकता-
क्यों बाबू? क्यों न कह सकोगे? बोलो।
लैला की वाणी में पुचकार, दुलार, झिड़की और आज्ञा थी।
यह सब बात मैं नहीं...
बीच में ही बात काटकर उसने कहा-नहीं क्यों? तुम जानते हो, नहीं बोलोगे? उसने लिखा है, मैं तुमको प्यार करता हूँ।
लिखा है, बाबू! लैला की आँखों में स्वर्ग हँसने लगा! वह फुर्ती से पत्र मोड़कर रखती हुई हँसने लगी। मैंने अपने मन में कहा-अब यह पूछेगी, वह कब आवेगा? कहाँ मिलेगा? -किन्तु लैला ने यह सब कुछ नहीं पूछा। वह सीढ़ियों पर अर्द्ध-शयनावस्था में जैसे कोई सुन्दर सपना देखती हुई मुस्करा। रही थी। युवक दौड़ता हुआ आया; उसने अपनी भाषा में कुछ घबराकर कहा, पर लैला लेटे-ही-लेटे बोली। युवक भी बैठ गया। लैला ने मेरी ओर देखकर कहा-तो बाबू! वह आवेगा। मेरी चारयारी खरीदेगा। गुल से भी कह दो। मैंने समझ