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जहांगीर बादशाह स०१६६४।

बनाया था और अकबर बादशाहने मुरतिजाखांको बख्श दिया था जो दिल्लीका रहनेवाला था। मुरतिजाखांने यमुनाके तीर पर एक बड़ा चबूतरा पत्थरोंका बनाया था जिसके नीचे पानीले मिली हुई एक चोखंडी काशी(१) के कामकी हुमायूं बादशाहके हुक्मसे बनाई गई थी। उसके समान हवादार स्थान कम था । हुमायूं बहुधा अपने सखाओं और सभासदों सहित वहां बैठा करता था।

बादशाहने ४ दिन तक उन स्थानमें रहकर अपने सखाओं के साथ खूब मद्य पान किया। उसका विचार सरकार पालमके रमनों में हाकेका शिकार खेलनेका था। पर राजधानीमें प्रवेश करनेका मुहर्त निकट आगया था और दूसरा मुहर्त इन दिनोंमें नहीं था इसलिये उसने नौकामें बैठकर जलके रस्तेसे आगरेको प्रस्थान किया।

चैत्र बदी ७ को मिरजा शाहरुखको सन्तानमेंसे ४ लड़के और ३ लड़कियां जो अकबर बादशाहको नहीं दिखाई गई थीं बाद- शाहके पास लाई गईं। बादशाहने लड़के तो अपने विश्वासपात्र अमीरोंको सौंपे और लड़कियां अन्तःपुरकी टहलनियोंको पालने के वास्ते दीं।

राजा मानसिंह।

२० (चैत्र बदी ८) को राजा मानसिंह ६|७ फरमानोंके पहुंचने पर सूबे बिहारके किले रूहताससे आकर बादशाहकी सेवामें उप- स्थित हुआ। बादशाह लिखता है--"यह भी खानआजमके समान इस राज्यके पुराने खुर्रांट भेड़ियोंमेंसे है। जो कुछ इन लोगोंने मेरे साथ और मैंने इनके साथ किया है उसको ईश्वर जानता है। शायद कोई मनुष्य किसी मनुष्यसे इतनी टाला नहीं दे सकता है। राजाने १०० हथिनी और हाथी भेट किये जिनमेंसे एक भी ऐसा न था जो खासेके हाथियोंमें रखा जाता। पर यह मेरे पिताके छपापात्रोमेंसे था इसलिये मैं उसका अपराध उसके मुँह पर नहीं लाया और बादशाहोंकीसी दया मया करके उसका मान बढ़ाया।


(१) पच्चीकारी।