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संवत् १६६७।

बादशाहने जब यह समाचार सुने तो बनारसी गयास और दूमरे मनसबदारोंकों जिन्होंने किलेकी रखवाली नहीं की थी बुलवाया उनके सिर और मूछें मुंडवाकर ओढ़नी उढ़वाई और गधे पर बैठाकर आगरके बाहर और बाजारोंमें फिरवाया जिससे दूसरे लोगोंको डर हो।

दक्षिण।

१६ सफर (जेठ बदी ३) को बादशाहने परवेज और शुभचि- न्तक अमीरोंके लिखनेसे मीर जमालुद्दीन हुसैन अनजूको आदिल खां और दूसरे दक्षिणी जमींदारोंके मनका सन्देह दूर करने और उनको बादशाही सेवामें लगानेके लिये दस हजार रुपये देकर दक्षिणको भेजा।

बांधों पर सेना।

बांधोंके जमींदार विक्रमाजीतको दण्ड देनेके लिये जिसने अधीनता छोड़ दी थी बादशाहने राजा मानसिंहके पोते महासिंह को भेजा और यह हुक्म दिया कि उधरके दुराचारियोंको विध्वन्स करके राजाकी जागीर पर अपना दखल करलें।

राणाको मुहिम।

२८ (जेठ बदी ३०) को अबदुल्लहखां फीरोजजंगकी अरजी कई साहसी सरदारोंकी सुफारिशमें पहुँची। उन्होंने राणाकी लड़ाई में अच्छे काम किये थे। बादशाहने उनमेंसे गजनीखां जालोरीकी सेवा सबसे अधिक देखकर उसके मनसब पर जो डेढ़ हजारी जात और तीनसौ सवारोंका था पांच सदी जात और चारसौ सवार और बढ़ा दिये। ऐसेही औरोंके भी मनसब बढ़ाये।

काले पत्थरका सिंहासन।

४ महर चन्द्रवार(१) (आश्विन सुदी १०) को दौलतखां इलाहा


(१) तुजुक जहांगीरी (पृष्ठ ८५) में ४ महर बुधको लिखी है सो अशुद्ध है चन्द्रवारको चाहिये क्योंकि आगे १० आजर शुक्रकी रातको ठीक लिखी है दिनको गुरु और रातको शुक्र मुसलमानी हिसाबसे होजाता हैं।