पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१५७

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संवत् १६६६।

को बादशाह हाथीपर सवार हो अबदुर्रज्जाकके बागसे किलेके दौलतखाने तका जिसका फासिला एक कोस और २० डोरी था पन्द्रहसौ रूपये लुटाता गया और ज्योतिषियोंके दिये हुए मुहर्त्तमें नये राजभवनमें पहुंचा जिसके बनानेका हुक्म शिकारको जाते हुए देगया था। उस राजभवनको ख्वाजेजहांने इतनी थोड़ी अवधिमें,अति परिश्रमसे बनवाकर और रंग भरवाकर तैयार कर छोड़ा था और अपनी भेट भी उसमें सजा रखी थी जिससे बादशाहने कुछ लेकर शेष उसको बख्श दी और भवनको पसन्द करके उसकी कार्य्यवाहीकी प्रशंसा की।

बाजार भी नौरोजके प्रसंगसे मजाये गये थे।

छठा नौरोज।

६ मुहर्रम (चैत सुदी ७) चन्द्रवारको दो घड़ी ४० पल दिन चढ़े सूरज भगवान अपने उच्चभवन मेख राशिमें आये। बादशाह को राज्याभिषेकका छठा नौरोज हुआ जिसकी मजलिसें जुड़ीं। बादशाह तख्त पर बैठा। अमीरों और सब चाकरोंने मुजरा किया, बधाई दी। मीरान सदरजहाँ, अबदुल्लहखां, फीरोजजंग और जहांगीरकुलीखांकी भेट स्वीकार हुई।

८ (चैत सुदी १०) बुधको राजा कल्याणकी भेट जो बंगालसे आई थी दृष्टिगोचर हुई।

९ (चैत सुदी ११) गुरुवारको शुजाअतखां और कई मनसबदार जो दक्षिणसे बुलाये गये थे हाजिर आये।

मुरतिजाखांकी भेटमें बहुत तरहके बहुतसे पदार्थ थे। बादशाहने सबको देखकर कुछ जवाहिर उत्तम कपड़े और हाथी घोड़े लेलिये बाकी उसीको देदिये।

शुजाअतखां बङ्गालमें इसलामखांके पास कायममुकामीका काम करनेको भेजा गया। ख्वाजाजहां आदि कई अमीरों के मनसब बढ़े कईको सिरोपाव मिले। खुर्रमको आठ हजारी जात और पांच हजार सवारोंके सनसब पर दो हजारी जातकी वृद्धि हुई।