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जहांगीरनामा।

कन्या राशि पर होता है। हाथी घोड़ोंके रक्षकोंको पारितोषिक देते हैं।

तीसरा वैश्य वर्ण है यह ऊपर लिखे दोनों वर्णोकी सेवा करता है। खेती लेन देन व्याज और सौदा इनका कर्तव्य हैं। इनका भी एक त्यौहार है उसको दीवाली कहते हैं यह दिन महर महीनेमें आता है, जब सूर्य्य तुला राशि पर होता है। इस दिनकी रातको दीपमाला कहते हैं। मित्र और बांधव एक दूसरेके घरमें जुड़कर जुआ खेलते हैं। इन लोगोंका धन्धा व्याज और लेन देनका है इसलिये इस दिन हारने जीतनेको शकुन जानते हैं।

चौंथा शूद्र वर्ण हैं। यह हिन्दुओं का संबसे नीचा जथा है। यह सबकी सेवा करता है। जो ऊपरके वर्षोंके अधिकार हैं उससे इसको कुछ प्रयोजन नहीं हैं। इसका त्यौहार होली हैं जो इसके निश्चय में वर्षका अन्तिम दिन है। यह दिन असफन्दार महीनेमें आता है जब सूर्य्य मीन राशिमें होता है। इस दिनकी रातको रास्तों और गलियों में आग जलाते हैं जब दिन निकलता है तो पहर भर तक एक दूसरे पर राख डालते हैं। फिर नहाकर कपड़े पहिनते हैं बागों और जङ्गलोंमें बिचरनेको चले जाते हैं।

हिन्दुओंमें मुर्दा जलानको रीति हैं इसलिये इस रातको आग जलानेसे यह अभिप्राय है कि पिछला वर्ष जो मरेके समान होगया है उसे जलाते हैं।

मेरे पिताके समयमें हिन्दू अमीरों और दूसरे लोगोंने ब्राह्मणों की देखादेखी राखीको रीति इतनी फैलादी थी कि रत्न मोतियों और जड़ाऊ फूलोंको डोरों में पिरोकर उनके हाथमें बांधा करते थे। कई वर्ष तक ऐसा होता रहा। फिर जब यह आडम्बर बहुतही बढ़ गया तो उन्होंने उकता कर बन्द कर दिया। ब्राह्मण अपने डोरों और रेशनके धागोंको निज नियमानुसार शकुनके वास्ते बांधते रहे। मैंने भी इस वर्ष उन्हींके शिष्टाचरणका बरताव करके हुक्म दिया कि हिन्दू अमीर और हिन्दुओंके मुखिया मेरे हाथोंमें