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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३०५

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संवत्१६७४।

' संवत ९६७४ २८८. देकर विदा किया और यह हुक्म दिया कि जब अपने देश में पहुंचे तो बड़े वेटेको दरंगाहमें भेजदे कि वह हुजूरमें रहा करे।' . . . . . . . धावला।: । : १७ (अगहन बदौ १९) शुक्रवारको बादशाह पांच कोस चल कर गांव धावलेमें ठहरा।' बकरईद। १८ (अगहन सुदी १२) शनिवारको बकरईद थी। बादशाह उमका काय करके ३। कोस चला और गांव नागोरमें तालाबके तट पर उतरा। - गांव ससरिया। . ..: १८ (अगहन सुदी १३) रविवारको ५ कोस.चलकर गांव सम- रियाके तालाब पर डेरे हुए। दोहद। २. (अगहन सुदी १४) सोमवारको ४। कोस पर परगने दोहद में पड़ाव हुया। यह परगना गुजरात और मालवेका सिवाना है। जवसे बादशाहने बदनोर छोड़ा था सारे रास्ते में जंगल और पहाड़ पाये थे। रेनाव। - १९ (पौष बदौ १) बुधवारको ५। कोस चलकर गांव रेनावमें मंजिल हुई। दूसरे दिन सुकाम हुआ। जालोत। २४ (पौष सुदी ३) शुक्रवारको अढाई कोस कूच हुआ गांव जालोतमें डेरा लगा। यहां करनाटकके.बाजीगरोंने पहुंचकर बाद- शाहको अपने खेल दिखाये। एक बाजीगर ॥ गज 'लग्बी और एक सेर दो दाम वजनकी जनौरको मुंहमें रखकर धीरे धीरे पानी के घोंसे निगल गया। घड़ी भर तक पेट में रखकर फिर बाहर लेप्राया। [ २५ ]