पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३१३

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संवत्१६७४।

२६७ और बलुत अलिबा शिकार की और सब समासदीको बाटो गाई: गाने दीवार। शुक्रबारको चार कोखका अच और गांव बाड़ों में मुकाम हुमा रास्तेने बादशाहने कई जगह दीवारें देखी जो दो दो गज तक जंची थीं। पूछा तो मालूम हुआ कि यह दीवारें लोगोंने पुण्याथः बनाई हैं कि जो कोई बोझ लेजाने वाला थक जावे तो अपना बोझ इन पर रखकर सुस्ता ले और फिर बिना किसीके सहारही उठाकर अपना रस्ता ले। यह बात बादशाहके बहुत पसन्द आई। उसने हुक्म दिया कि सब बड़े बड़े शहरों में इसी प्रकार दीवारें बादशाही व्ययसे बनवा दें। कांकरिया ताल । २३ (नाव बदौ ३) शनिवार को पौने पांच कोम चलकर कांक- रियाताल पर डेरा हुआ जो अहमदाबादके बसानेवाले सुलतान अहम के पोते कुतुबुद्दौनका बनाया हुआ है। उसका घाट पत्थर धौर यूनेसे पक्का बंधा है। तालके बीच में छोटासा नागोचा और एक अवन है। तालके किनारसे वहांतका जानेके लिये पुल बना है। बहुत वर्षो से यह स्थान टूट फूट गया था और कोई ठोर बादशाहो रहनेके योग्य नहीं रही थी इसलिये गुजरातके बखशी सफोलांने सरकारसे जीर्णोद्धार करके बागीचा भी सजवा दिया था और एक नया झरोखा भो. ताल और बागोवेके ऊपर झुका दिया था। वह बादशाहको बहुत पसन्द आया। पुलके पासही निजामुद्दीनने जो अकबर बादशाहके राज्य में कुछ समय तक यहां बखशो रहा था एक बाग लगाया था। __ अबदुलहखांको दरह।

बादशाहसे अर्ज हुई कि निजामुद्दीनके बेटे आबिदसे और अब-

दुलहखांसे बिगाड़ है। इससे अबदुलहने इस बागके पेड़ कटवा झाले हैं। यह भी सुना गया कि जब अबदुल्लहखां यहांका हाकिम ।